जम्मू और कश्मीर (J & K) का सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA), 1978, एक प्रशासनिक कानून है, जो किसी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमा या आरोप के 2 साल तक हिरासत में रखने की अनुमति देता है।
इस अधिनियम के आधार पर किसी को बिना किसी वारंट, विशिष्ट अभियोग और बिना उचित समय दिए हिरासत में लिया जा सकता है लेकिन कुछ मामलों में यह अधिनियम हिरासत में लिए गए व्यक्ति को हिरासत में लेने के कारण के बारे में सूचित करने का प्रावधान करता है, साथ ही उसको अपनी हिरासत के खिलाफ सरकार के समक्ष अपना पक्ष रखने का मौका भी देता है।
फिर भी, अगर लगता है कि कुछ सार्वजनिक हित के खिलाफ है तो किसी भी तथ्य को साबित करने के लिए निरोधी प्राधिकरण की आवश्यकता नहीं| यह अधिनियम पूरे जम्मू-कश्मीर में लागू है। अधिनियम राज्य की सुरक्षा के लिए किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के मामले में 2 साल तक के लिए प्रशासनिक हिरासत की अनुमति देता है, और एक वर्ष तक के लिए जहां "कोई भी व्यक्ति किसी तरह से सार्वजनिक आदेश के खिलाफ कार्य कर रहा है"। इस अधिनियम के तहत हिरासत आदेश संभागीय आयुक्त या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया जाता है।
सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 2012 में किए गए संशोधनों के बाद, 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति का हिरासत में रखना सख्त वर्जित था।धारा 22 के अनुसार- “पीएसए (PSA ) के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई भी मुकदमा, अभियोजन या कोई अन्य कानूनी कार्यवाही को संज्ञान में लिया जायेगा। PSA के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होगा।
यह समाचारों में क्यों है?
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री- उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को 6 फरवरी, 2020 को प्रशासन द्वारा पीएसए के तहत नजरबंद किया गया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव और पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर, पीडीपी के वरिष्ठ नेता सरताज मदनी को भी पीएसए के तहत नजरबंद किया गया था। इससे पहले, 16 सितंबर, 2019 को पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला को पीएसए के प्रावधानों के तहत हिरासत में लिया गया था।