Hindi Quiz for IBPS RRB

IBPS RRB के लिए आपकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए हम आपके लिए हिंदी की प्रश्नोतरी लाये है. अपनी तैयारी को तेज करते हुए अपनी सफलता सुनिश्चित कीजिये...




Directions (1-10): नीचे दिए गए प्रत्येक परिच्छेद में कुछ रिक्त स्थान छोड़ दिए गए हैं तथा उन्हें प्रश्न संख्या से दर्शाया गया है। ये संख्याएँ परिच्छेद के नीचे मुद्रित हैं, और प्रत्येक के सामने (a), (b), (c), (d) और (e) विकल्प दिए गए हैं। इन पाँचों में से कोई एक इस रिक्त स्थान को पूरे परिच्छेद के संदर्भ में उपयुक्त ढंग से पूरा कर देता है। आपको उस विकल्प का चयन करना है और उसका क्रमांक ही उत्तर के रूप में दर्शाना है। आपको दिए गए विकल्पों में से सबसे उपयुक्त का चयन करना हैं। 

Q1. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
वियोग
संसर्ग
संशोधन
समुच्चय
इनमें से कोई नहीं
Solution:
यहाँ ‘समुच्चय’ शब्द का प्रयोग उचित है। ‘समुच्चय’ का अर्थ है- वस्तुओं आदि का एक जगह एकत्र होना।

Q2. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारण&#2#2368;य विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
विरोधी
आग्रही
विचारक
व्यक्ति
इनमें से कोई नहीं
Solution:
यहाँ ‘आग्रही’ शब्द का प्रयोग उचित है। ‘आग्रही’ का अर्थ है-किसी बात पर अड़े रहने वाला, हठ करने वाला, हठी।

Q3. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
परिभाषा
परिस्थिति
कसौटी
संसृति
इनमें से कोई नहीं
Solution:
यहाँ ‘कसौटी’ शब्द का प्रयोग उचित है। ‘कसौटी’ का अर्थ है- किसी वस्तु को जाँचने-परखने का मानदंड।

Q4. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
ऐतिहासिक
पारलौकिक
तात्कालिक
भौतिक
इनमें से कोई नहीं
Solution:
यहाँ ‘तात्कालिक’ शब्द का प्रयोग उचित है। ‘तात्कालिक’ का अर्थ है- तत्काल या तुरंत का।

Q5. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
उद्धरण
प्रयास
व्यवहार
चक्रव्यूह
इनमें से कोई नहीं
Solution:
यहाँ ‘उद्धरण’ शब्द का प्रयोग उचित है। ‘उद्धरण’ का अर्थ है- किसी पुस्तक, नाटक, भाषण व आलेख आदि का वह वाक्यांश या पद्यांश जो प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

Q6. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
परिष्कृत
विलुप्त
संग्रहित
अनुपस्थिति
इनमें से कोई नहीं
Solution:
यहाँ ‘संग्रहित’ का प्रयोग उचित है।

Q7. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
प्रयोग
संक्षेप
परिवर्तन
परिप्रेक्ष्य
इनमें से कोई नहीं
Solution:
यहाँ ‘परिप्रेक्ष्य’ का प्रयोग उचित है। ‘परिप्रेक्ष्य’ का अर्थ है- देखने अथवा सोचने की दृष्टि विशेष, किसी विषय, घटना या बात के विभिन्न पक्ष।

Q8. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
आलोचना
स्नेह
आत्मोत्सर्ग
विभीषिका
इनमें से कोई नहीं
Solution:
यहाँ ‘विभीषिका’ का प्रयोग उचित है। ‘विभीषिका’ का अर्थ है- भय या डर दिखाना, आतंक, डराने का साधन।

Q9. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार्मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
स्वीकार्य
अस्वीकार्य
निष्क्रिय
परिमार्जित
इनमें से कोई नहीं
Solution:
यहाँ ‘अस्वीकार्य’ का प्रयोग उचित है। ‘अस्वीकार्य’ का अर्थ है- जो स्वीकार करने या ग्रहण करने योग्य न हो, अमान्य, अग्राह्य।

Q10. बौद्ध धर्म के अनुसार, मनुष्य मस्तिष्क, शरीर, इच्छा, चाहत, उद्देश्य, आशय, रुचि, भाव व तर्क का _(1)_ है। बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के उसे अपने नैतिक और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए प्रयास करना है। बुद्ध अपने धम्म के सिद्धांतों के तार्किक परीक्षण के _(2)_ हैं और वे अपने शिष्यों से बिना किसी विशेष आदर या अनुराग के उनके अपने विचारों को भी तर्क की _(3)_ पर परखने के लिए कहते हैं। बुद्ध के लिए जीवन की _(4)_ चिंताएं महत्वपूर्ण हैं। इस बात को उनके तीर वाले _(5)_ से समझा जा सकता है। अगर तीर से घायल किसी व्यक्ति के लिए प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि यह तीर उसके शरीर से बाहर निकले और उससे हुए घाव की तुरंत चिकित्सा हो। यदि वह व्यक्ति तीर के आकार-प्रकार, किसने तीर चलाया, उसकी जाति क्या थी, कहां से आया आदि जैसे व्यर्थ के प्रश्नों में उलझ जायेगा तो यह उसके लिए नि:संदेह घातक होगा। बुद्ध के लिए धार्मिक-दार्शनिक पहचान महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक जीवन का निरंतर प्रयास आवश्यक है। इस प्रयास में मार्गदर्शन के लिए सूत्र बुद्ध ने दिये जो विवरण और विश्लेषण के साथ बौद्ध धर्म के शास्त्रों में _(6)_ हैं। बुद्ध के संदेशों और संकेतों में कई ऐसे सूत्र हैं, जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। विश्व और पूरी मनुष्यता के सामने उपस्थित संकटों को तीर के उद्धरण वाले प्रसंग के _(7)_ में रखते हुए उन्हें श्रेणीबद्ध कर प्राथमिकताएं तय की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए युद्ध की समस्या और उससे जनित _(8)_ को लें। युद्ध, हिंसक संघर्ष, परस्पर अविश्वास आदि समस्याएं मानवता की चिर समस्याएं हैं और इनसे ही बहुत सारी अन्य परेशानियां जन्म लेती हैं। बुद्ध के लिए हिंसा _(9)_ है। वे युद्ध और शांति का उद्गम केंद्र मनुष्य के मस्तिष्क को मानते हैं। इसीलिए वे चित्त की शांति और हृदय में करुणा की बात करते हैं। समानता, न्याय, स्वतंत्रता और मानवाधिकार आज के लोकतांत्रिक विश्व के प्रमुख मूल्य हैं। वैसे तो ये तत्व सामाजिक और राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं, लेकिन इनपर धार&#2381#2381;मिक विचार भी बहुत पहले से व्यक्त किये जाते रहे हैं। प्राचीन भारत में ये अलग से विचारणीय विषय न होकर, एक समग्र _(10)_ के ही अंग थे।
द्वेषदृष्टि
प्रेमदृष्टि
विश्वदृष्टि
सद्भावदृष्टि
इनमें से कोई नहीं
Solution:
यहाँ ‘विश्वदृष्टि’ का प्रयोग उचित है।

Directions.(11-15) निम्नलिखित में से प्रत्येक प्रश्न में दिए गए हिंदी या अंग्रेजी शब्द के लिए उसका अंग्रेजी या हिंदी में अनुवाद कीजिए। 

Q11. ‘Loathe’
हिंसक
विरलता
घृणा
शपथ
इनमें से कोई नहीं
Solution:
अर्थ की दृष्टि से ‘Loathe’ का हिंदी रूप ‘घृणा’ है।

Q12. ‘Tranquillity’
नवीकरण
शांति
अल्पज्ञता
खरीद
इनमें से कोई नहीं
Solution:
अर्थ की दृष्टि से ‘Tranquillity’ का हिंदी रूप ‘शांति’ है।

Q13. ‘Diminution’
अवनति
उन्नति
निर्भीक
अव्यवस्थित
इनमें से कोई नहीं
Solution:
अर्थ की दृष्टि से ‘Diminution’ का हिंदी रूप ‘अवनति’ है।

Q14. ‘कृत्रिम’
Factitious
Feeble
Indignity
Hybrid
इनमें से कोई नहीं
Solution:
अर्थ की दृष्टि से ‘कृत्रिम’ शब्द का अंग्रेजी रूप ‘Factitious’ है।

Q15. ‘मधुर’
Panacea
Mellifluous
Prolific
Ingenuous
इनमें से कोई नहीं
Solution:
अर्थ की दृष्टि से ‘‘मधुर’ शब्द का अंग्रेजी रूप ‘Mellifluous’ है।




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