इसरो प्रमुख के. सिवान ने 13 जून को इसकी जानकारी दी और बताया कि इस स्टेशन को फिलहाल 2030 तक स्थापित करने की योजना है। यह करीब 20 टन का होगा। जिसमें चार से पांच अंतरिक्ष यात्री एक साथ 15 से 20 दिनों तक रह सकेंगे।
यह स्टेशन इसलिए भी अहम है, क्योंकि माइक्रोग्रेविटी से जुड़े प्रयोग सिर्फ यहीं हो सकते है। जो गगनयान मिशन की कामयाबी को आगे बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी होगा।
इसरो प्रमुख ने मानव मिशन गगनयान की तैयारियों की भी जानकारी दी और बताया कि इसके तहत फिलहाल अंतरिक्ष यात्रियों के चयन की प्रक्रिया चल रही है। इनमें भारतीय वायु सेना की मदद ली गई है। इसे लेकर भारतीय वायु सेना के साथ एक करार भी किया गया है। जिसमें अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण का जिम्मा भी उन्हें दिया गया है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष पर फिलहाल तीन व्यक्तियों को भेजने की योजना है। जिसके लिए कम से कम छह लोगों का चयन होगा। जिन्हें शुरूआती प्रशिक्षण भारत में दिया जाएगा। जबकि हाईटेक प्रशिक्षण के लिए रूस और दुनिया के दूसरे देशों में भेजा जाएगा। यह प्रशिक्षण करीब 18 महीनों का होगा। अंतरिक्ष यात्रियों के चयन से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा यह प्रक्रिया छह महीने में पूरी हो जाएगी। फिलहाल इसके लिए दस हजार करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया गया है।
बता दें कि अमेरिका और रूस ने साझा प्रोजेक्ट के तौर पर 1998 में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बनाया था। कई अन्य देश भी बाद में इसके निर्माण में जुड़ते गए। हालांकि, ज्यादातर कंट्रोल्स और मॉड्यूल्स का खर्च अमेरिका ही उठाता है। 18 देशों के 230 लोग इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में जा चुके हैं। यह धरती से लगभग 400 किमी ऊंचाई पर स्थित है। यह 28 हजार किमी की गति से घूमता है।
इसके अलावा चीन भी दो स्पेस स्टेशन लॉन्च कर चुका है। चीन ने 2011 में अपना पहला स्पेस स्टेशन तियांगोंग-1 लॉन्च किया था। इसे दो साल के लिए तैयार किया गया था। यह 1 अप्रैल 2018 को धरती पर गिरकर नष्ट हो गया था। चीन ने 2016 में तियांगोंग-2 लॉन्च किया। यह अभी भी मौजूद है। चीन 2022 तक तियांगोंग-3 को लॉन्च करने की भी योजना बना रहा है।