वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक

चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index- MPI) के नए संस्करण के अनुसार, 2005-06 और 2015-16 के बीच में भारत की गरीबी की दर 55 प्रतिशत से घटकर 28 प्रतिशत रह गई है।

प्रमुख बिंदु
इस सूचकांक को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) और ऑक्सफोर्ड गरीबी एवं मानव विकास पहल (Oxford Poverty and Human Development Initiative- OPHI) द्वारा विकसित किया गया है।
2005-06 से 2015-16 के दौरान भारत के सबसे गरीब वर्गों जैसे- मुसलमानों और अनुसूचित जनजातियों ने गरीबी को कम करने में सबसे अधिक योगदान दिया है।
इन दस वर्षों के दौरान भारत में कुल 271 मिलियन (27.10 करोड़) लोग गरीबी सूचकांक से बाहर आए।
यह सूचकांक अभावों के 10 आयामों पर तैयार की गई सूची पर आधारित है। जिसमें प्रमुख रूप में स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा और जीवन स्तर हेतु अभावों को लिया गया है।
MPI बहुआयामी गरीबी को मापता है इसके तहत ऐसे लोग आते हैं जो कई प्रकार के अभावों का सामना कर रहे हैं, उदाहरण के लिये वे लोग जो अल्पपोषित हैं और जिनके पास सुरक्षित पेयजल, पर्याप्त स्वच्छता और स्वच्छ ईंधन नहीं है।
रिपोर्ट के अनुसार, 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बहुआयामी गरीबी सबसे तेज़ी से कम हुई है।
2005-06 में भारत में 292 मिलियन गरीब बच्चे थे, जबकि 2015-16 में इनकी संख्या 136 मिलियन पाई गई अर्थात नवीनतम आँकड़े में पहले की अपेक्षा 47 प्रतिशत की कमी पाई गई है।
वैश्विक MPI में कुल 105 देश शामिल हैं, जो दुनिया की आबादी का 77 प्रतिशत या 5.7 बिलियन हैं। इस अनुपात में 23 प्रतिशत लोगों (1.3 बिलियन) की पहचान बहुसंख्यक गरीब के रूप में की जाती है।
भारत की स्थिति
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 640 जिलों में मध्य प्रदेश का अलीराजपुर जिला सबसे गरीब है, जहाँ MPI के अनुसार 76.5 प्रतिशत लोग गरीब हैं।
राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, और नगालैंड के साथ झारखंड में MPI में काफी सुधार पाया गया है।
2015-16 के आँकड़ों के अनुसार, बिहार अब भी सबसे गरीब राज्य है जहाँ आधे से अधिक आबादी गरीबी में अपना जीवन व्यतीत कर रही है।
2015-16 में चार सबसे गरीब राज्य - बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश थे जहाँ MPI के अनुसार अभी भी 196 मिलियन लोग गरीब हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में ग्रामीण वंचितों, निचली जातियों और जनजातियों जैसे पारंपरिक वंचित उप-समूह, मुस्लिम वर्ग और छोटे बच्चे सबसे गरीब थे हालाँकि, इन परिदृश्यों में तेज़ी से सुधार हुआ है।
गौरतलब है कि यह ट्रेंड 1998-99 से 2005-06 के बीच देखा गया है।
1998-99 से 2005-06 के दौरान इन समूहों की प्रगति सबसे धीमी रही और वे पीछे रह गए। यही कारण है कि 2015-16 में भी MPI के अनुसार अनुसूचित जनजातियों में से आधे गरीब हैं, जबकि उच्च जाति में केवल 15 प्रतिशत हैं।
हर छठे ईसाई की तुलना में हर तीसरा मुस्लिम बहुसंख्यक गरीब है। 10 साल से कम उम्र के पाँच में से दो बच्चे गरीब (41 प्रतिशत) हैं, लेकिन 18 से 60 वर्ष (24 प्रतिशत) के एक-चौथाई से भी कम लोग गरीब हैं।
हालाँकि इस दशक की अवधि के दौरान जीडीपी की औसत वृद्धि दर लगभग 7.6 प्रतिशत थी।

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